जीरकपुर में घना जंगल बनाने की पीछे की पूरी कहानी

एक फेसबुक पोस्ट से हुई शुरुआत

Screenshot of the FB Post in 2019

3 जून 2019 को फेसबुक पर एक पोस्ट डाली गई, उस पोस्ट में जीरकपुर में पेड़ लगाने के बारे में पूछा गया था (Facebook Post Link)। इस पोस्ट को 300 से अधिक लाइक मिले और 200 से ज्यादा कमेंट हुए। यहीं से एक व्हाट्सअप ग्रुप बना और 5 लोग इसमे शामिल हुए। 

9 जून 2019 को इन सदस्यों की पहली मीटिंग लोहगढ़ पार्क में हुई। 

इसके बाद पहली बार 23 जून 2019 को एमिनेन्स सोसाइटी के पीछे शमशान भूमि में 5 पांच पेड़ लगा कर इस अभियान की शुरुआत की गई।

एक बार पेड़ लगाने शुरू हुए तो फिर लोग साथ जुड़ते गए, सबका साथ मिलता गया और देखते ही देखते पूरे जीरकपुर में 1200 से ज्यादा पेड़ लगाए गए।





सड़कों के किनारे, दुकानों और मकानों के बाहर, स्कूल, हॉस्पिटल, पार्क और अलग अलग सोसाइटी में ये पेड़ लगाए गए। इस काम में जिस से जो सहयोग बन पड़ा उसने बढ़ चढ़ कर योगदान दिया।

लेकिन...

इस पूरे अभियान में कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ा।

सार्वजनिक जगहों पर पेड़ लगाने पर कभी आसपास के लोग एतराज करते थे तो कभी जानवर नुकसान पहुंचाते।

कुछ जगहों पर मेंटेनेंस और पानी की सप्लाई की कमी के कारण भी पौधों को नुकसान होता तो कहीं असामाजिक तत्व जानबूझ कर पेड़ों का नुकसान करते।

इस समस्या से निपटने के लिए काफी मंथन किया गया और तब एक खाली पड़ी सरकारी जमीन पर पेड़ लगाने की योजना सामने आई।


यह जमीन 100 एकड़ लेजर वैली नेचर पार्क के लिए प्रस्तावित है, तो ये जगह वृक्षारोपण के लिए सबसे उपयुक्त थी। सितंबर 2020 में यहां 100 पेड़ लगाए गए, लेकिन सुनसान इलाका और आवारा जानवरों के कारण कामयाबी नही मिल सकी। इसी तरह समय गुजरता गया और तब आया जून 2021.

इस वक्त तक ग्रीन प्लेनेट सोसाइटी रजिस्टर हो चुकी थी। अब तक संस्था में काफी सारे समर्पित स्वयं सेवक जुड़ चुके थे। संसाधनों और अनुभव के हिसाब से भी पहले से बेहतर हुए।

जीरकपुर का पहला मियावकी घना जंगल बनना शुरू हुआ

पिछले 2 साल के अनुभव और एक मजबूत टीम के साथ ग्रीन प्लेनेट सोसाइटी ने योजनाबद्ध तरीके से जंगल बनाने का काम शुरू किया। इस दौरान हर तरफ से आर्थिक और नैतिक समर्थन मिला। 2021 के मानसून के अंत तक 5800 स्क्वायर गज जमीन पर 1800 पेड़ लगा दिए गए।











इसके बाद संगठन के सदस्यों ने कठिन मेहनत करते हुए पूरे साल सर्दी, गर्मी, आंधी तूफान से पौधों को बचाते हुए जून 2022 तक पहुंचा दिया। 














घने जंगल में एक ट्रेक बनाया गया है, और साथ ही जंगल के बीचों बीच बैठने की जगह भी है। अब ये जंगल आखिरी चरण में है और  नवंबर 2022 तक आम जनता यहां सैर करने आ सकेगी।